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स्वामी विवेकानंद का जन्मशती वर्ष 1963 में सम्पूर्ण भारत में अन्यान्य संगठन अपने स्तर पर मना रहे थे। कन्याकुमारी में भी कुछ लोगों ने विचार किया कि समुद्र के बीच शिला पर भी  स्वामी विवेकानन्द का स्मारक बनाया जाए,  जहाँ उन्होंने 1892 में ध्यान किया और उसके बाद भारत के मूल्यों को पाश्चात्य भूमि पर स्थापित करके भारत को गौरान्वित किया। 1962 में चीन के हाथों धोखा खाने के आघात से उबरने में देश को पुनः गौरवान्वित करने के लिए यह सुयोग्य अवसर सिद्ध हुआ।
 स्मारक के संस्थापक एकनाथजी रानडे का जीवन हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि जीवन में कठिनाइयों के सामने कभी झुकना नहीं है और एक से एक जुड़ते हुए संगठन बनाते हुए आगे बढ़ते जाना है यही विचार आज पूरे देश में विवेकानंद केन्द्र विवेकानन्द शिला स्मारक के 50 में वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर प्रचारित प्रसारित कर रहा है उक्त विचार विवेकानंद केंद्र के प्रकाशन समिति के सदस्य तथा राजस्थान साहित्य अकादमी के सदस्य श्री उमेश कुमार चौरसिया ने शिला स्मारक के संपर्क अभियान के अवसर पर सीनियर सिटीजन ग्रुप 3 की बैठक में व्यक्त किए।

बैठक के दौरान ही श्री मदनलाल शर्मा तथा सुभाष चांदना ने विवेकानंद शिला स्मारक पर अपने बिताए हुए क्षणों को याद किया और विभिन्न संस्करणों को लोगों से साझा किया। महासंपर्क कार्यक्रम हेतु आयोजित इस बैठक का संचालन विभाग संपर्क प्रमुख रविंद्र जैन ने किया।

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