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Samidha at Napur 2015नागपुर, नवम्बर 23 : विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की अखिल भारतीय उपाध्यक्षा सुश्री निवेदिता भिड़े ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द का विजन एकनाथजी का मिशन है। स्वामी विवेकानन्द ने सुप्त भारतीय समाज को अपनी ओजस्वी वाणी से जाग्रत करते हुए कहा था, “हे भारत, उठो! और अपनी आध्यात्मिकता से विश्वविजयी बनों।” स्वामीजी के इस आह्वान से ही भारत में नवचेतना का संचार हुआ। निवेदिता दीदी विवेकानन्द शिलास्मारक निर्माता और विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक श्री एकनाथजी रानडे की जन्मशती पर्व पर आयोजित “समिधा” समारोह को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे कि विश्व के कल्याण के लिए भारत का पुनरुत्थान आवश्यक है। स्वामी विवेकानन्द के इस विजन को एकनाथजी ने अपना मिशन बनाया और उन्होंने विवेकानन्द केन्द्र के माध्यम से स्वामी विवेकानन्द के “राष्ट्र पुनरुत्थान” की छटपटाहट को जन-जन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा।

नागपुर के मुंडले सभागृह में आयोजित इस समिधा समारोह में राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) के निदेशक डॉ.श्री सतीश वटे बतौर अध्यक्ष तथा नागपुर मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफ़ेसर एवं विवेकानन्द केन्द्र नागपुर के नगर संचालक डॉ. जगदीश हेडाऊ व्यासपीठ पर विराजमान थे।

समारोह को संबोधित करते हुए निवेदिता दीदी ने कहा कि आज विवेकानन्द केन्द्र की 813 शाखाएं और प्रकल्प शिक्षा, संस्कार, सेवा और प्रबोधन के माध्यम से स्वामीजी के विचारों को समाज तक पहुंचा रही हैं। उन्होंने कहा कि हमारा भारत विविधताओं से भरा एक महान देश है, जहां ईश्वर को विभिन्न नामों और रूपों में पूजा जाता है। हमारे देश में अनेक भाषा, पंथ और उपासना पद्धति होने के बावजूद अपने आराध्य को ही सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए संघर्ष नहीं होता, वरन हर व्यक्ति प्रत्येक दर्शन स्थल के सामने बड़ी श्रद्धा से शिश झुकता है। यही भारत की अध्यात्मिक शक्ति है जो सभी मत, सम्प्रदाय और पंथों को सबका सम्मान करना सिखाती है। आज भारत के इस आध्यात्मिक विचार की सम्पूर्ण विश्व को जरुरत है।

सच्चा अध्यात्म

निवेदिता दीदी ने कहा कि तिलक, पूजा और भगवान के सामने बैठकर मात्र जप करने से या ग्रंथों को रट लेने मात्र से कोई आध्यात्मिक नहीं हो जाता। पूजा-पाठ जीवन के लिए आवश्यक हो है ही पर हमें अध्यात्म को सही परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। निवेदिता दीदी ने जोर देते हुए कहा कि अध्यात्म यानी आत्मीयता, त्याग और निःस्वार्थ सेवा। यह अध्यात्म हमारे जीवन के सभी आयामों में झलकना चाहिए। उन्होंने कहा कि बिजली, पानी, सड़क और बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण को आज विकास का मानक बताया जा रहा है। यह भौतिक विकास जरुरी है लेकिन आध्यामिकता को भूला देने से भारत का निर्माण नहीं हो सकता। भारत के पुनरुत्थान के लिए अध्यात्म को जीनेवाले समाज का निर्माण करना होगा। पर इस कार्य के लिए आगे आएगा कौन? स्वामीजी कहा करते थे, मनुष्य केवल मनुष्य भर चाहिए, बाकि सब अपने आप हो जाएगा।

आगे निवेदिता दीदी ने विवेकानन्दजी के उस सन्देश का भी उल्लेख किया जिसमें स्वामीजी ने कहा था, “सिंह के पौरुष से युक्त, परमात्मा के प्रति अटूट निष्ठा से संपन्न और पावित्र्य की भावना से उद्दीप्त नर-नारी, दरिद्रों एवं उपेक्षितों के प्रति हार्दिक सहानुभूति लेकर देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भ्रमण करते हुए मुक्ति का, सामाजिक पुनरुत्थान का, सहयोग और समता का संदेश देंगे।” निवेदिता दीदी ने जोर देते हुए कहा कि स्वामीजी के सपनों के ये युवा कौन है जो अपने देश और समाज के प्रति गहन आत्मीयता रखते हुए उनकी सेवा के लिए अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय अर्पित कर सके। उन्होंने कहा कि एकनाथजी की जन्मशती पर पूरे देश में ‘सफल युवा-युवा भारत’ के माध्यम से ऐसे ही युवाओं को कार्य से जोड़ा गया है जो देश की सेवा के लिए अपने जीवन का निश्चित समय का दान कर सके।

अहंकार, ईर्ष्या और आलस्य संगठन में बाधक

दीदी ने कहा कि अहंकार, ईर्ष्या और आलस्य ये तीन विकार संगठन के कार्य में बाधा पहुंचाते हैं। वर्तमान में देश और दुनिया के सामने जो चुनौतियां है उसे प्रत्युत्तर देने के लिए हमें अपने कार्य को अधिक गति से आगे बढ़ाना है। एकनाथजी के जीवन में ऐसे कई प्रसंग आएं जहां उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में सफलताएं प्राप्त कीं। उन्होंने निश्चित समय सीमा में विवेकानन्द शिलास्मारक का निर्माण किया, विवेकानन्द केन्द्र की स्थापना की और कार्यकर्ताओं के सामने “निःस्वार्थ सेवा” का महान आदर्श रखा। यही कारण है कि आज अरुणाचल सहित उत्तर-पूर्वांचल में शिक्षा और संस्कारों के साथ ही देशभक्ति की चेतना जाग्रत हुई।

समिधा के मर्म को समझें

निवेदिता दीदी ने देशसेवा में कार्यरत कार्यकर्ताओं के समर्पण भाव को सबसे महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि समर्पण के बिना सेवा नहीं हो सकती। विवेकानन्द केन्द्र का कार्य राष्ट्रयज्ञ है और कार्यकर्ता इस यज्ञ में अपने तन, मन और धन की समिधा अर्पित करता है। ये समिधा उसका कमिटमेंट है, संकल्प है। यज्ञ में जिस तरह समिधा अर्पित की जाती है, उसी तरह संगठन में अपने संकल्प की समिधा अर्पित की जाती है। एक बार हमने संकल्प कर लिया तो किन्तु-परन्तु या यह-वह जैसी कारण बताने से संकल्प की पूर्ति नहीं होती। निवेदिता दीदी ने कहा कि संकल्प की पूर्ति पूर्ण समर्पण से ही हो सकता है। राष्ट्रकार्य में पूर्ण समर्पण ही कार्यकर्ता की समिधा है। त्याग, सेवा और आत्मबोध से संगठन का कार्य सातत्य से करना, यह प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए आवश्यक है। राष्ट्रयज्ञ को प्रज्वलित करने के लिए ‘तिल-तिल जलना’ होगा, ताकि हमारा जीवन सफल ही नहीं तो वह सार्थक भी बन जाए।

अपने अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं निरी के निदेशक डॉ.श्री सतीश वटे ने कहा कि पर्यावरण जैसा गुरु नहीं। पर्यावरण हमें समर्पण सिखलाता है। हम अपनाप से पूछें कि क्या मैं वही समिधा हूं जिससे यह राष्ट्रयज्ञ प्रज्वलित हो रहा है? डॉ.वटे ने कहा कि पक्षी डालियों के हिलने से कभी भयभीत नहीं होते क्योंकि उनको अपने पंखों की शक्ति विश्वास होता है। हमारी शक्ति हमारे अन्दर है और हृदय से मिलनेवाली शक्ति को कोई पराजित नहीं कर सकता। विवेकानन्द केन्द्र ने समिधा अर्पित करने का आह्वान किया है। हृदय से अर्पित की जानेवाली यह समिधा इतनी बढ़े कि राष्ट्रयज्ञ के प्रकाश से सम्पूर्ण विश्व आलोकित हो सके।

इससे पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री एकनाथजी रानडे पर डॉक्युमेंट्री फिल्म दिखाई गई। कार्यक्रम के दौरान ‘लर्निंग फॉर ए मैनेजर’ नामक पुस्तक तथा विवेकानन्द केन्द्र के कार्यों पर आधारित 2016 का विवेक रत्नाकर कैलेण्डर का विमोचन किया गया। डॉ.हेडाऊ ने कार्यक्रम की प्रस्तावना दी तथा केन्द्र की नगरप्रमुख गौरीताई खेर ने आभार व्यक्त किया। समारोह का संचालन अर्चना लापलकर ने किया। इस अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका सुश्री शांताक्का, प्रमिलाताई मेढ़े, आर्ष विज्ञानं गुरूकुलम की आचार्य स्वामिनी ब्रह्मप्रकाशानन्दा सहित नगर ने गणमान्य नागरिक भारी संख्या में उपस्थित।

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